अनुभव हर प्रकार से जरूरी है जीवन के लिए। फिर वह अच्छे हो यां बुरे।
शारीरिक संबंध बनाना एक क्रिया है जो दोनों लिंगो के लिए समान रूप से आनंदमय और उत्तेजना का स्त्रोत है।
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विवाह का मूल उद्देश्य भी उसी क्रिया को उन्मुक्त रूप से अपनाना है।
विवाह
को सामाजिक क्रिया बनाया जाने के बाद यह पैमाने बने हैं कि शारीरिक संबंध
केवल विवाहेत्तर होने चाहिए। किन्तु प्राकृतिक तौर पर ऐसा कोई बंधन नहीं।
जैसे ही दोनों लिंग के लोग यौवन अवस्था में पहुंचेंगे काम इच्छा होना
स्वाभाविक है।
आजकल बदलाव हो रहे है।
सदियों
से पुरुषों को कोई बंदिशे नहीं थी शारीरिक संबंध बनाने के लिए, केवल
महिलाओं पर अंकुश थे। किन्तु अब जैसे जैसे स्त्री पुरुष में समानता आई है,
अब महिलाएं भी अपनी इच्छा स्वरूप शारीरिक संबंधो को अपनी मर्जी से अपनाती
है। ना कि मजबूरी यां बंधन के हिसाब से।
शारीरिक संबंध बनते है दो लोगों में प्यार, इच्छा और स्वीकृति से, ना कि केवल सामाजिक विवाह की क्रिया से।
आजकल
कई लोग उन्मुक्त विचारधारा रखते है, उनके लिए शारीरिक संबंधों का महत्व
किसी व्यक्ति के पूरे आचरण, सोच, जीवनशैली और समझदारी से अधिक नहीं है।
इसलिए पुरानी धारणाओं से बाहर निकलकर कई भ्रांतियां भी बदली है।
जैसे।
किसी लड़की का पहली बार शारीरिक संबंध बनाने से रक्त निकलना ही उसके कौमार्य का गवाह है!
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गलत!
लड़कियां आजकल भागा दौड़ी करती है उसकी वजह से जरूरी नहीं की पहली बार
संबंध बनते वक्त रक्त निकले।दूसरे आजकल विवाह देर से हो रहे हैं, इस कारण
उनका शरीर परिपक्व हो जाता है, ऐसे में रक्तस्राव होना मुश्किल है।
लड़की आंनद नहीं उठाए संबंधों का मतलब कुंवारी है!
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गलत!
ये एक पुरानी सोच है। लड़कियां भी उत्तेजित होती है, उन्हें भी पसंद होते
है संबंध बनाना। केवल पिछले जमाने में वह दिखावा करती थी नापसंदी का ताकि
लोग उन्हें गलत ना समझें, उनके बारे में गलत धारणाएं ना बना लें।
जैसे आपने बना ली है इस प्रश्न द्वारा।
देखिए
लड़कियां आजकल अगर कंवारी है भी, तो अनपढ़ यां दुनियादारी से अनभिज्ञ नहीं
है। उन्हें पता है शारीरिक संबंध कैसे बनते हैं। क्या होता है। सब कुछ।
आजकल लोग हर काम को करने से पहले ही उससे जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त कर
चुके होते हैं। पहले की तरह नहीं की सुहागरात पर कोई जानकारी दोनों को नहीं
होती थी फिर भी शारीरिक संबंध बनाते थे।
पिछले
जमाने कि तरह उन्हें अज्ञानी ना समझे। अगर वह शारीरिक संबंधों के बारे में
जानती है और उसे अपनी सुहागरात के वक्त खुलकर अनुभव करना चाहती है तो इसका
मतलब उसको अनुभवी ना समझें।
इस
तरह की भ्रांतियों को हमें समाज से निष्कासित करना होगा। साथ ही जो लोग
इनको सही मानते है, उन्हें समझाने की कोशिश करिए। और अगर ना मानें तो उनसे
दूर रहिए।
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